Thursday, April 24, 2008

यूं तो सुमति जी की अधिक तर कवितायें लम्बी हुआ करती थी पर उन्होने कुछ नन्हीं मुन्नी कवितायें भी लिखी है अपने छोटे कद के बावजूद ये कविताये दम खम मे किसी से कम नही है .हमे तो लगता है कि कम शब्दो मे बड़ी और गहरी बात कह पाने से इनका कद और ऊंचा हो गया हो गया है .
अकेलेपन की पीड़ा को थोड़े से शब्दो मे कैसे कह डाला है ....

जानते हो?

मेरा यह अकेलापन

बेहद जिद्दी है,

जब तुम आते हो,

इसे फ़ुसला कर सुला देती हूं,
तुम्हारे जाते ही,
यह जाग कर चिपट जाता है .

और देखिये.....

मैं ऎक पुराना सा चित्र हूं
अतीत के फ़्रेम से कटा
वर्त्मान के धुंधले धब्बों से भरा

उन धुंधली जगहों में
भ्विष्य अपना रंग भरेगा .

अकेलापन एक तो वह होता है जो हम सब्के अन्दर होता है .कभी कभी तो इतने अन्दर दुबका होता है कि हम खुद भी जैसे उसे भूल जाते है और कभी कभी अकारण ही चारों ओर की चहल पहल के बावजूद सारी चीजों को परे हटा मन पर ऐसे छा जाता है कि समझ ही नहीं आता कि इसे कैसे छिपाये और ना छिपा पाये तो क्या कारण पकड़ायें उन प्रशन हुई जा रही निगाहों को .एक अकेलापन और होता है ....किसी और का दिया हुआ .और इस अकेलेपन के लिये क्या कहती हैं सुमति जी......


उदास एकांत चांद
भीगा नीम

जीवन के द्वार तक

आंगन के पार तक

अश्रु साभार लिये तुमसे

अकेली मैं

देखती हूं
द्वार के
इधर उधर .

एक लम्बी निष्फ़ल प्रतीक्छा की उदासी से मन भर आया ............