Saturday, August 20, 2011

किताबों से मोह एकदम अलग बात है.उन्हे पढ लेने के बाद,एक नहीं कई कई बार शुरु से आखिर तक पलट लेने के बाद भी उनसे मोह खत्म नहीं होता.ऐसा भी होता है कि अलमारी मे सजी,या स्थान की कमी के कारण कई बार बक्से में बंद किताबों तक कई बार हम एक लम्बे अरसे तक पहुच नहीं पाते पर उनके होने का एह्सास ही सुकून पहुचाने को काफ़ी होता है.पर हमे लगता है कि किताबे इकठ्ठा करने वाले कमोबेशी हर व्यक्ति की जिन्दगी में या उसकी जिन्दगी के बाद एक ऐसा समय आता है कि वह खजाना दूसरे हाथो मे सौपना पड़ता है.बहुत तकलीफ़देह होता है यह समय.वैसे देखा जाय तो किताबों की सर्थकता इसी मे है कि उन्हें अधिक से अधिक लोग पढ सके लेकिन किताबों से सही ढंग से प्यार ,उनको सही ढंग से सहेजने वालो की संख्या कम होती है.इस विरासत के लिये वारिस ढूढना आसान नही होता.


हमारे पास भी किताबों का एक बड़ा संग्रह है और इसमे काफ़ी किताबें सुमति जी की विरासत हैं जो उनके बाद हम तक पंहुचाई गयी थीं .हमने भी उन किताबों को सहेजा.किताबों के साथ साथ उनके होने का एक एह्सास भी जुड़ा है.इनमे से कुछ किताबे उन्हें किसी अवसर पर किसी ने भेंट की थी तो बहुत सी स्वंम लेखक /कवि द्वारा उन्हे अपने हस्ताक्षर सहित दी गयी थी.कितनी स्म्रितियां ,कैसी यादें.पर यह कागज कलम के जरिये ही सम्भव हुआ.e-books के जरिये ऐसी यादों को कैसे जिन्दा रखा जा सकेगा.अब परिवर्तन तो अवश्सम्भावी है तो यह तो होना ही है---विलुप्त होते सार्वजनिक पुस्तकालय और वाचनालय ,नज़र न आती पत्रिकायें ,किताबे.




आइये देखें सुमति जी के संग्रह की कुछ किताबें---


















ये कुछ यादें हैं लोगो की,तारीखों की----पता नहीं इनमे से कौन ,कहां है पर कुछ भावनाओं ,थोड़ी बहुत जान -पहचान और जीने के सबब की धरोहरें हैं .ऐसी न जितनी कितनी पुस्तकों का खजाना है.नाट्य शास्त्र,संगीत,भाषा विग्यान,उपन्यास,कहानी,कवितायें,लेख,समीक्षा......................