Friday, September 22, 2017

1982 में भारत सरकार, मानव संसाधन मंत्रालय, संस्कृति विभाग के तत्वाधान में अखिल भारतीय सुब्रह्म्णय भारती शताब्दी समारोह समिति का गठन हुआ था. इसके अंतर्गत एक उप समिति का गठन किया गया और उसे भारती के कृतित्व को अंग्रेजी एंव हिंदी में रूपांतरित करने तथा उसे प्रकाशित करने का कार्य भार सौंपा गया. इसी के तहत प्रकाशित हुई एक पुस्तक सुब्रह्म्ण्य भारती , मंकलित कवितायें एवं गद्द. इसी पुस्तक में प्रकाशित भारती जी की कुछ कविताएं जिसका अनुवाद डा. सुमति अय्यर द्वारा किया गया है.
                                                                       बांसुरी


कहां से आ रही है
यह मधुर ध्वनि सखि री
कौन बजा रहा है
इस मधुर बंशी को ?
ऊंचे पर्वत से आ रही है
या किसी वृक्ष के रंध्र से
या कि वह मोहक ध्वनि
किसी दूर क्षितिज से आ रही है ?
क्या यह ध्वनि
देवी यमुना की लहरों से आ रही है
जिसकी कल-कल ध्वनि
निरंतर संगीतमय है ?
क्या यह ध्वनि उपवन के
झरते पत्तों की है ?
या यह कोई सुंदर पक्षी है
जो मधुर रागिनी
निरंतर गा रहा है ?
क्या यह अदृश्य किन्नर है
जिसके वाद्य यंत्रों की
मादक ध्वनि की गूंज है यह ?
सखि री यह तो कनु की बांसुरी है
इसकी ध्वनि कानों को संगीत से
भर देती है।
यह ध्वनि बाण की तरह
हृदय को भेद कर रख देती है।
वह कनु
हम अबलाओं को
इन बाणों से निरंतर आहत करता है
सखि री ।

इसी संकलन से सुमति अय्यर द्वारा अनुदित एक अन्य कविता ,,,,,

                                                                   कण्णन : मेरी मां


नहीं अघाते हम कभी
जीवन वक्ष से
चेतना दुग्घ का पान करते ।
बिन मांगे ही
कराये दुग्ध का पान हमें
कितनी महिमामयी है मां मेरी


कण्णन कहलाती है वह
आह, अंतरिक्ष सी भुजाएं फैलाये
भर लिया है, अंक में मुझे
वसुंधरा की गोद में, दुलराकर
अंनत कथाएं कहती है,वह
विचित्र और रहस्य भरी ।

कभी सुखद कथाएं, कभी विजय गाथाएं
कुछ पीड़ा की, कुछ पतन पराजय की
मेरी वय, मेरी इच्छा के अनुकूल
कथाएं कहती मेरी मां, मुझे पुलकित करती मेरी मां

कितने अद्भुत खिलौनों से बहलाती मेरी मां
एक चन्द्र है, चांदी की चंद्रिमा वाला चंद्रमा
घुमड़ते बादल, एक दूसरे पर उफनते बादल
रंग बिरंगे खिलौने, पावस में भीगा इंद्रधनुष
और फिर वह रक्ताभ सूर्य
किस मुख से बखानूं
शब्द चुक गए अब!
कैसे हो वर्णन !
आकाश मीन से वे नक्षत्र !
नन्हें नन्हें रत्न ज्वाल
कैसे गिनूं उन्हें
व्यर्थ ही प्रयास है !
हरी भरी गिरि माला
दृढ़ और अचल शैल
नि:शब्द वे खिलौने मेरे
खेल के संगी हैं !

उन्मुक्त देश भर में विचरती हैं नदियां
वर्षा में उफनती हैं नदियां
और मिलती हैं सागर में
वह शांत गहरा विशाल फेनिल सागर !
वह विशाल सागर !
गुनगुनाता गरजता
मां का स्तुति गान करता सागर !
ओम् ओम् का निनाद करता सागर !

ये उद्यान, कुंज, गलियां
खिले रंग, बिरंगे फूल जिनमें
डालों पर झुकते फल रसीले
सुंदर, स्वादिष्ट फल यहां के ।
अहा यह विश्व है सुंदरतम
यहां हर वस्तु है सुंदरतम !
कितनी उदार है वह विश्व मां !
जिह्वा को मिलें अनेक स्वाद
कानों को प्रिय गाने
मेरे ही सहधर्मी साथी
प्रेम की उष्मा से भाती
ये सुंदर, सुगठित कन्यायें ।
पंखों वाले सुंदर पांखी
धरा पर विचरते वन्य पशु
सागर को चीरती मछलियां
कितने कितने प्यारे साथी
जुटाए मां ने मेरे लिए !
अपरिमित ग्यान
ललित कलायें , कोटि अनेक ।
मनोरंजन के लिए ढेरों हास
परिहास !
पंडितों के शास्त्र
राजाओं की मूर्ख गाथा
बुजुर्गों  का हो पाखंड
या युवकों की नन्हीं चिंताएं ।

मेरी आद्या मां
सबकुछ मुझे प्रदान करें
मांगूं , इससे पहले झोली भरें ।
रक्षिका है, मां मेरी
कृपादृष्टि का पात करें
अर्जुन सा योगी बना मुझे
मेरा होगा सदा एक काम
मां की करूणा का करूं गान
कृष्णा , ओ मेरी मां
प्रदान करें
य़शस्वी जीवन
शतायु और गौरवमयी जीवन ।


                                                              

इस संकलन में सुमति अय्यर द्वारा अनुदित  और भी रचनाओं को स्थान दिया गया है, जैसे -- कण्णन  मेरा शिष्य, कण्णन मेरा प्रेमी. इन कविताओं के अतिरिक्त गद्य भाग में ...अथ, साहस, जन वर्ग आदि.