नब्बे के दशक के शुरूआती दौर की बात है, लखनऊ में एक 'दस्तावेज प्रकाशन' हुआ करता था प्रशान्त कुमार जी द्वारा संचालित । अब भी है या नहीं हमारी जानकारी में नहीं है. दस्तावेज ने 'समकालीन दस्तावेज' शीर्षक के तहत एक सिरीज निकालनी प्रारम्भ की थी, जिसकी पांचवी कड़ी के रूप में तमिल उपन्यास, दासिगल् मोसवलै, अल्लटु मति पेट्र माइनर का हिंदी रूपान्तर दासियों का मायाजाल प्रकाशित किया गया था. यह उपन्यास मूल रूप में 1936 में प्रकाशित हुआ था और 1993 में पहली बार हिंदी में अनूदित हुआ था। यह एक विद्रोही देवदासी का आत्मकथात्मक उपन्यास है। उपन्यास की लेखिका रामामृतम अम्माल हैं। हिंदी अनुवाद सुमति अय्यर द्वारा किया गया है. यह आखिरी कृति थी जिसे सुमति जी अंतिम रूप दे स्वंय अपने हाथों से संपादक को सौंप गयीं थीं। उसके अगले ही उनके हाथों दुनिया छोड़ने का फरमान थमा दिया गया था. न जाने कितने काम अधूरे रह गये.
चलिये जो पूरा हो पाया उसे ही संजो लिया जाय.....
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