Sunday, January 6, 2019



 किस वर्ष में प्रकाशित हुआ यह कविता संग्रह यह हमें पुस्तक में कहीं मिला नहीं लेकिन इतना तो तय है के 1985 के पहले ही हुआ था। पुस्तक का मूल्य था मात्र 7.50 रूपए। अब तो पचास पैसे भी धीरे धीरे लुप्त हो रहे हैं और साथ ही लुप्त हो रही है पुरानी किताबों के पन्नों से आती वह सोंधी खुशबू।
चलिए , आज पढ़ते हैं, सुमति अय्यर के इस कविता संग्रह की एक कविता---

अठारह सूरज के पौधों की तरह।
मैं स्वयं,
ऊपर से थोपी गयी भूमिका की तरह,
कट कर रह गई हूं,
दो पृष्ठों में।
सुनो,
मैं तुम्हारे इस संस्करण की
भूमिका तो बन सकी हूं,
क्या पता,
अगले संस्करण तक
यह दो बात भी
समाप्त हो जाय
और मुझे फ्लैप पर भी जगह न मिले
फिर मैं पुस्तक कैसे रह गयी
तुम पुस्तक हो,
और मैं तुम्हारा नया विज्ञापन,
और विज्ञापन बदलते हैं
        समय के अनुसार ।


सम्बंधों का सच इतने शालीन व्यंग से उकेरा है, सुमति जी ने कि बस होठों के कोर पर एक छोटी सी टेढ़ी मुस्कान आ कर टिक जाती है और शब्द हाथ बांधे खड़े रह जाते हैं।




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