Monday, February 11, 2008

मैं नमिता हूं .सुमति अय्यर के शब्दो ,भावों और विचारों को यूं सहेजने के प्रति मेरा आग्रह क्यों है ? यह प्रशन आपके दिमाग मे उठना स्वाभाविक हैं.सुमति जी से मेरी पहली मुलाकात शायद अम्रिता प्रीतम जी के किसी साक्छातकार संकलन मे हुई थी .फ़िर तो मुलाकातों का सिल्सिला चल निकला .सत्तर और अस्सी के दशक मे सुमति अय्यर हिंदी साहित्य मे एक उभरता हुआ नाम था .बल्कि ९४ तक तो खासा परिचित एवम स्थापित सा हो चला था यह नाम ,जब एक झटके से कलम ही तोड़ दी गयी .सुमति जी से मेरा रिश्ता एक रचनाकार और पाठक के रिश्ते से कहीं ज्यादा है .हम व्यक्ति के स्तर पर भी एक दूसरे से जुड़े थे .कुछ ऐसे कि चौदह सालों बाद भी वो हमारी जिंदगी में बदस्तूर शामिल हैं .मेरा यह प्रयास उनकी रचनाओं से अधिक कहीं उन्हें ही कुछ और सहेज लेने की एक बच्कानी भाव्नात्मक जिद है . हम उनसेऔर उनकी रच्नाओं से तो जुड़े थे मगर उनके मित्रों और कार्य्छेत्र के परिचितों से मेरा साबका नही के बराबर था .मेरा ऐसे सब लोगो से जो उनसे कभी मिळे थे या परिचित थे यह अनुरोध है कि इस पन्ने को वो अपना माने और जो कहना चाहे कहे .हम उनके कहे को इस्मे जोड़ने का पूरा प्रयास करेगें यदि जीवन चिरन्तन होता है तो मेरा विश्वास है कि हमारी आवाज सुमति जी तक जरूर पहुंचेगी .
चिड़िया उड़ गयी चुप्चाप
पलाश झुलस गया बे मौसम
झरना सूख गया बेआवाज
ये लाइने लिखते समय सुमति जि को यह नही मालूम था कि उनकी कलम से उन्का ही आगत रचा जा रहा है .सच चुप्चाप बेमौसम ही चली गयी थी वे .आइये देखे कैसे सफ़र पर निकलना चाहती थी वे .
गीले में पहाड़ी रास्ते
पास से निकलते बादलों के बीच

दूर तक फ़ैले घास के मैदानों

या कि
घने जंगलों की सुरमई पगडंडियोंके बीच
आओ
उड़ा दें तमाम शब्दों को कहीं हम
और चलते रहें चुपचाप
उन अबूझ काही रास्तों पर
जहां आहट हो
प्रश्न ना हों
हो सर्व्नामों के साये
वर्ज्नाओं की धूप
सिर्फ़ चलते रहे हम
एहसास बन कर
एक दूसरे के भीतर उतरते हुए .......

देखो न अक्का एह्सासों सी ही तिरती रहती हो तुम हमारे भीतर .तुम्हें कैसा लग रहा सफ़र सारी वर्ज्नाओ से दूर .......

3 comments:

Sootradhaar said...

नमिता...
...चॊदह सालो का लम्बा सफ़र आप का चला ऒर दुर्भाग्य से असमय ही टूट गया...ऎसा रिश्ता टूटने के बाद का दुख ऒर खाली पन कभी भरा नही जा सकता...ऒर जो सुमति ने कहा अपनी कविता मै वह कितना..शान्त...कितना ठहरा हुआ ऒर कितना अद्वितीय है...हर कवि की स॑वेदनाये ऒर वेदनाये अलग होती है लिनको कोई ऒर वुअक्त नही कर सकता !

सूत्रधार

namita said...

सूत्रधार जि
बहुत अच्छा लगा आपको यहां पा कर और आपकी बात पढ कर .सुमति जी की कलम से जितना रचा गया उसे हम यूं मिल बांट कर अनुभूतियों के स्तर पर जी ले तो शायद यहीं उन्हे याद करने का सही तरीका होगा .
नमिता

Anonymous said...

Namaste
Naresh here
li'l trouble with blogger password.. so commenting thru anonymous entry.

Aise kisi blog par aana mera pahla anubhav hai... jo hamaare beech nahi, unke panne par aana achcha laga...
Ye shaayad hamesha unhe saath, apne paas rakhne ki zid hi hai... bahut achhi hai ye zid.

Is page ko padhna zaraa sa mshkil ho raha thha... lekin usse kahin zyaada mushkil raha hoga is page ko likhna...
Shaayad... nishturta ki had tak.

Keep it up!!!